
परिचय
मित्रों आज फिर से एक ऐसे बहु उपयोगी चीज के बारे में चर्चा करने जा रहा हूँ। हमारे दैनिक जीवन में ऐसी बहुत सी चीजें हैं जिन्हें हम रोज उपयोग में लाते हैं उनमें नहाने का साबुन एक ऐसी वस्तु है जिसे चाहे छोटा बच्चा हो या जवान या बुजुर्ग हर कोई उपयोग में लाता है। लेकिन क्या हम भली-भांति समझ पाते हैं कि कौन सा साबुन हमारे शरीर के लिए सही है। साबुन रासायनिक और आयुर्वेदिक/हर्बल दो प्रकार के होते हैं।
सामान्यत: हम टेलीविजन पर आने वाले विज्ञापनों को देख कर दैनिक उपयोग में आने वाले साबुन का चुनाव करते हैं। लेकिन, इनमें से ज्यादातर टॉयलेट सोप यानी कि शौच करने के बाद हाथ धोने वाले साबुन शामिल होते हैं। भारत में बहुत कम साबुन हैं जिन्हें बाथिंग सोप का दर्जा मिला हुआ है।
प्राचीन समय में साबुन के विकल्प
वैसे प्राचीन समय में साबुन के काफी सारे विकल्प थे। जिनका उपयोग करके साबुन से बेहतर शरीर को सुरक्षित तरीके से परिमार्जित (साफ करना) किया जाता था।
1. मिट्टी या क्ले के माध्यम से – मिट्टी या क्ले शरीर के रोम छिद्रों से अशुद्धियों को अच्छी तरह बिना किसी नुकसान के निकालने में मदद करता है। यह त्वचा में होने वाले कील मुहांसों को कम करने, त्वचा की लालिमा और सूजन को शांत रखने में काफी कारगर सिद्ध हुआ है। वैसे मिट्टी विभिन्न प्रकार की होती है और सभी में एक से बढ़कर एक गुण होते हैं।

जैसे मुल्तानी मिट्टी चेहरे के लिए, काली मिट्टी बालों के लिए। मिट्टी को आप शुद्ध जल, गुलाब जल, सेब के सिरके आदि के साथ मिश्रित करके भी उपयोग में ला सकते हैं।
2. फल या सब्जियों के माध्यम से – फल और सब्जियां खाने में तो फायदेमंद होती ही हैं साथ ही साथ त्वचा की सफाई के लिए एक बेहतरीन विकल्प भी है। इसमें भी कुछ ऐसे एंजाइम होते हैं जो त्वचा की रोमछिद्रों को गहराई में जाकर साफ करते हैं और रोम छिद्रों में स्थित सीबम को हटा देते हैं।

खीरा, पपीता, टमाटर, नींबू, केला आदि ऐसे फल या सब्जियां हैं जो कि त्वचा को साफ करने के साथ साथ त्वचा में स्थित मृत कोशिकाओं(डेड सेल्स) को बहुत ही अच्छी तरह साफ करते हैं।
आधुनिक समय के साबुन
आज भाग दौड़ की जिंदगी में लोगों के पास समय का अभाव होने के कारण पारम्परिक साबुन के विकल्पों को उपयोग कर पाना संभव नहीं रहा। ऐसे में सिर्फ साबुन ही एक ऐसा विकल्प है जो कि सहज और सरल माध्यम से आम बाज़ार में उपलब्ध है। भारतीय बाजार में बिकने वाले ज्यादातर साबुन सिर्फ हाथ धोने तक के लिए उपयुक्त हैं।
अच्छे साबुन का चुनाव कैसे करें
साबुन के वर्गीकरण से पहले हम एक महत्त्वपूर्ण शब्द TFM के बारे में जान लें जो सामान्यत: हर साबुन के पैकेट के पीछे लिखा मिल जायेगा। “TFM ” का मतलब TOTAL FATTY MATERIAL होता है जो कि साबुन का वर्गीकरण और गुणवत्ता का निर्धारण करता है। साबुन में जितना ज्यादा TFM का प्रतिशत होगा साबुन की गुणवत्ता उतनी ही अच्छी होगी। इस आधार पर हम साबुन को 3 भागों में बांट सकते हैं, जिनमें कार्बोलिक साबुन, टॉयलेट साबुन और नहाने का साबुन यानी बाथिंग बार होता है।
कार्बोलिक साबुन | CARBOLIC SOAP
इस साबुन को GRADE 3 SOAP की लिस्ट में रखा जाता है। इसमें TFM का प्रतिशत 50% से 60% तक होता है और यह साबुन सबसे घटिया दर्जे का साबुन होता है। इसमें फिनायल की कुछ मात्रा होती है जिसका उपयोग सामान्यत: फर्श या जानवरों के शरीर में लगे कीड़े मारने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। यूरोपीय देशों में इसे एनिमल सोप या जानवरों के नहाने का साबुन भी कहते हैं। साबुन के पीछे TFM का प्रतिशत देखकर आप खुद समझ जाएंगे कि आपका साबुन किस ग्रेड का है।
टॉयलेट साबुन | TOILET SOAP
इस साबुन को GRADE 2 SOAP की लिस्ट में रखा जाता है। गुणवत्ता के आधार पर दूसरे दर्जे का साबुन होता है। भारत में इस प्रकार के साबुन का उपयोग ज्यादातर लोग करते हैं। सामान्यतया इसका उपयोग शौच इत्यादि के बाद हाथ धोने के लिए होता है। इसमें 65% से 75% TFM होता है। कार्बोलिक साबुन की अपेक्षा इसके इस्तेमाल से त्वचा को कम नुकसान होता है। भारत में इस श्रेणी के कई उत्पाद हैं। आप खुद भी साबुन खरीदने से पहले रैपर को देख कर पढ़ सकते हैं।
नहाने का साबुन | BATHING SOAP
इस साबुन को GRADE 1 SOAP की लिस्ट में रखा जाता है। यह गुणवत्ता के आधार पर सर्वोत्तम साबुन है तथा इसका उपयोग स्नान के लिए किया जाता है। इस साबुन में TFM की मात्रा 76% से अधिक होती है। इस साबुन के रसायनों से त्वचा पर होने वाली हानि न्यूनतम होती है। इस लिस्ट में डव साबुन, पियर्स और निरमा के कुछ प्रोडक्ट को रखा जा सकता है।
साबुन में खतरनाक रसायन कौन सा होता है, उसका क्या असर होता है
साबुन में झाग के लिए इस्तेमाल होने वाले रसायन सोडियम लारेल सल्फेट से त्वचा की कोशिकाएं शुष्क हो जाती हैं और कोशिकाओं के मृत होने की संभावना रहती है। यह आंखों के लए अत्यंत हानिकारक है। नहाते समय साबुन यदि आँखों में चला जाये तो इसी रसायन के असर से हमे तीव्र जलन का अनुभव होता है, त्वचा पर खुजली और दाद की संभावना होती है।
ऐसे में ये कहा जा सकता है कि कोई भी रासायनिक साबुन त्वचा के लिए लाभदायक नहीं है। लेकिन, साबुन का उपयोग करना बंद नहीं किया जा सकता है ऐसे में हमें उसी साबुन का इस्तेमाल करना चाहिए जिसमें TFM की मात्रा 76% से ज्यादा हो।
साबुन में मिलाए जाने वाले रसायन
साबुन बनाने की प्रक्रिया में 3 महत्त्वपूर्ण घटक वसीय अम्ल ,कास्टिक सोडा और पानी होते हैं। वसीय अम्ल (FATTY ACID), जिसका मुख्य स्रोत नारियल, जैतून या ताड़ के पेड़ होते हैं, इसे जानवरों की चर्बी से भी निकाला जाता है।
इसे टालो (TALLOW) कहते हैं जो की बूचड़खाने से मिलता है। टालो से निकले गए वसीय अम्ल अपेक्षाकृत सस्ते होते हैं। इस वसीय अम्ल (FATTY ACID) से सोडियम लौरेल सल्फेट (SLS) का निर्माण होता है जो झाग बनाने में प्रयुक्त होता है।
कैसे पता करें साबुन में जानवरों की चर्बी है या नहीं
क्या आप जानते हैं, ज्यादातर साबुनों में जानवरों की चर्बी होती है। भारत के करोड़ों शाकाहारी लोगों को इसकी जानकारी नहीं होती। लाखों शाकाहारी लोग ऐसे हैं जो मांस पकाने के लिए उपयोग किए गए चूल्हे तक को वर्जित मानते हैं परंतु वही लोग जानकारी के अभाव में जानवरों की चर्बी वाले साबुन से नहाते हैं और फिर खुद को स्वच्छ एवं भगवान की पूजा के लिए पवित्र मान लेते हैं।
यदि आप शाकाहारी हैं और आपके साबुन में जानवरों की चर्बी के बारे में पता करना है तो साबुन के रैपर पर TALLOW शब्द देख लें। टैलो लिखा है तो वह साबुन आपके लिए नहीं है। आपको फिर बिना टैलो वाले साबुन का उपयोग करना चाहिए।
निष्कर्ष
उम्मीद है आपको साबुन के बारे में यह जानकारी अवश्य ही अच्छी लगी होगी। जानकारी अच्छे लगी हो तो इसे अधिक से अधिक अपने मित्रों को शेयर करें और आपके स्क्रीन पर आने वाले पुश नोटिफिकेशन का YES बटन अवश्य दबा दें ताकि इसी तरह की नई जानकारी के नोटिफिकेशन आपको मिलता रहे।
धन्यवाद !