
प्राणायाम क्या है ?
Wellimmunity ब्लॉग में आपका स्वागत है तो आइये सबसे पहले जानते हैं प्राणायाम क्या है?, उसका स्वरुप व विधि क्या है, इससे क्या लाभ होते हैं इस विषय पर बहुत सारे मत हैं और अनेकों भ्रांतियां भी हैं।
कोई प्राणायाम को सिद्धि प्राप्ति का साधन बताता है तो कोई इसे मात्र रक्त शोधन की एक प्रक्रिया बताता है।
विज्ञान द्वारा प्राप्त जानकारी यह बताती है कि निगेटिव चार्ज वाले ऑक्सीज़न के अणुओं का बहार से वायु कोषों के माध्यम से रक्त में प्रवेश श्वसन प्रक्रिया का एक अंग है।
इस माधयम से विजातीय तत्व बहार फेंके जाते हैं, परन्तु यह प्राणायाम नहीं है, Deep Breathing (गहरा श्वांस-प्रश्वाँस लेने की प्रक्रिया) प्राणायाम है।

प्राणायाम जानने से पूर्व “प्राण” शब्द को जानना होगा। संस्कृत में ‘प्राण” शब्द की व्युत्पत्ति ‘प्र” उपसर्ग पूर्वक ‘अन्’ धातु से हुई मानी जाती है। प्राणायाम शब्द के दो खंड हैं–एक “प्राण” दूसरा “आयाम” है। प्राण का अर्थ है– जीवन तत्त्व और आयाम का अर्थ है–विस्तार। प्राण शब्द के साथ प्रायः वायु जोड़ा जाता है।
तब उसका अर्थ नाक द्वारा साँस लेकर फेफड़ों में फैलाना तथा उसके ऑक्सीजन अंश को रक्त के माध्यम से समस्त शरीर में पहुँचाना भी होता है। यह प्रक्रिया शरीर को जीवित रखती है।
अन्न जल के बिना कुछ समय गुजारा हो सकता है, पर साँस के बिना तो दम घुटने से कुछ समय में ही जीवन का अंत हो जाता है। प्राण तत्त्व की महिमा जीवन धारण के लिए भी कम नहीं है।
तो आपने यहाँ जाना की प्राणायम क्या है? लेकिन प्राणायाम करने के लिए कुछ बातों को समझना जरुरी है नहीं तो आप प्राणायाम का पूरा लाभ नहीं ले पाएंगे।
तो आइये जानते हैं प्राणायम करने के 15 नियम के बारे में, जो कि आपके प्राणायाम करने से होने वाले लाभ को और दुगुना कर देंगे।
प्राणायाम करने के 15 नियम | 15 rules of doing Pranayama
- प्राणायाम करने का स्थान स्वच्छ, हवादार, शांतिमय और पवित्र हो। प्राकृतिक स्थान, नदी, सरोवर का तट, पहाड़ आदि उत्तम हैं। फिर भी स्वच्छ हवादार कमरे या छत पर भी काम चलाया जा सकता है। दुर्गन्ध सीलन, धुआँ धूल युक्त स्थान पर प्राणायाम करने से हानि भी हो सकती है।
- ध्यानात्मक आसन, सिद्धासन अथवा योगासन अथग सुखासन अथवा वजासन आदि की स्थिति में बैठकर प्राणायाम करना चाहिए। खासकर इस बात का ध्यान रखा जाए कि मेरुदंड, गर्दन, कमर, छाती को सीधा रखें। इससे ही अनुकूल लाभ मिल सकेंगे।
- प्राणायाम से पर्याप्त लाभ उठाने के लिए आहार-विहार का संतुलन व्यवस्थित जीवन क्रम होना आवश्यक है, जीवन की मर्यादाओं का व्यतिरेक करने पर किसी भी अभ्यास से लाम नहीं मिलता।
- प्राणायाम के लिए प्रात:सायं का समय उपयुक्त है। भोजन करने के 4 घंटे के बाद ही प्राणायाम किया जाए। खाली पेट प्राणायाम करना चाहिए, पर बहुत ज्यादा भूख लग रही हो तब भी प्राणायाम नहीं करना चाहिए। व्यायाम के रूप में आरंभिक अभ्यासों में प्राणायाम करने से कोई दिक्कत नहीं।
- प्राणायाम के अभ्यास करने वाले का भोजन हल्का सात्विक स्निंग्ध, पेय आदि हैं। इस तरह रोटी, सब्जी, दूध, घी, दलिया, चावल, खिचड़ी, फल (सूखे मेवे भी) आदि उत्तम हैं।
- किसी तीव्र रोग बुखार आदि की स्थिति में, गर्भवती स्त्रियों को वेगयुक्त प्राणायाम का अभ्यास करना वर्जित है। इससे हानि की संभावना रहती है।
- अशक्त और निर्बल शरीर के लोगों को भस्त्रिका, अग्नि-प्रदीप्त, सर्वांग स्तंभ आदि प्राणायाम बिना पर्याप्त मार्ग दर्शन के नहीं करना चांहिए।
- शीतली बिना सीत्कारी, शीतकार, कंठ वायु, उदर पूरक, प्लावनी आदि प्राणायाम बिना प्रकृति का निर्धारण हुए स्वतः आरंभ न करें।
- शक्ति वर्धन एवं भारी काम करने के प्राणायामों में भोजन विशेष रूप से पौष्टिक, स्निग्ध और सुपाच्य लेना चाहिए।
- प्राणायाम के अभ्यासी को सदैव नाक से श्वॉस लेने की आदत डालनी चाहिए, मुँह से नहीं।
- ब्रह्मचर्य के पालन का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।
- पेट को हल्का और मल रहित रखने का प्रयत्न करना आवश्यक है। इससे प्राणायाम के अभ्यास में सुगमता और सिद्धि मिलती है।
- प्राणायाम के अभ्यास के बाद 15-20 मिनट या जितना बने विश्राम अवश्य ले लेना चाहिए।
- तीनों बंधनों को आवश्यकतानुसार ही मार्ग दर्शन के बाद लगाना चाहिए।
- प्राणायाम करते समय छाती को फुलाना चाहिए। इससे फेफड़े और अवयवों को विकास के लिए काफी सहायता मिल जाती है। सही ढंग से बैठने या लोटने से पर्याप्त लाभ नहीं मिलता।
निष्कर्ष
तो अपने देखा की प्राणायाम क्या है? प्राणायाम का शाब्दिक अर्थ क्या है और साथ ही साथ अपने प्राणायाम करने के 15 नियम के बारे में भी जानकारी प्राप्त किया। उम्मीद है आपको हमारी यह जानकारी अच्छी लगी होगी। अगर आपको अच्छी लगी तो अपने प्रियजनों और मित्रों को अवश्य ही शेयर करें।
धन्यवाद !