प्रोटीन क्या है? विश्व में प्रत्येक प्राणी कोशिकाओं से बना है। कोशिकाएं जीवन की आधारभूत इकाईयां हैं और इन कोशिकाओं की संरचना का एक बड़ा हिस्सा प्रोटीन से बना होता है। हमारे शरीर में 1000 खरब (1014 ) कोशिकाएं हैं। नई कोशिकाओं का निर्माण और पुरानी कोशिकाओं के नष्ट होने की प्रक्रिया जीवनभर चलती रहती है। लेकिन, भोजन में प्रोटीन की कमी होने पर शरीर में नई कोशिकाओं का निर्माण नहीं हो पाता जिसके कारण शरीर के विभिन्न कार्य बाधित हो जाते हैं।
प्रोटीन क्यों ?

हमारे सक्रिय, स्वस्थ और उम्र के अनुरूप युवा रहने के लिए प्रोटीन सबसे आवश्यक पोषक तत्व है। शरीर के संपूर्ण विकास, सुरक्षा, रख-रखाव व प्रत्येक अंग के उचित संचालन में प्रोटीन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रोटीन हड्डियों, मसल्स, शरीर के मुख्य द्रव्यों (रक्त, हॉर्मोन, आदि) और ऊतकों (बाल, नाखून, त्वचा, आदि) की संरचना का आधार होते हैं। हमारे आहार में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन व फैट, सभी के पाचन के लिए जरूरी एंजाइम भी प्रोटीन से बनते हैं। इसलिए हमारे दैनिक आहार में पर्याप्त प्रोटीन होना बहुत जरूरी है।

प्रोटीन की संरचना का आधार, एमिनो एसिड नामक अणुओं की एक श्रृंखला होती है। पाचन के दौरान आहार में शामिल प्रोटीन, विभिन्न एमीनो एसिड अणुओं में विघटित हो जाते हैं और उपयोग के लिए लिवर में अवशोषित व संग्रहित हो जाते हैं। शरीर इन एमीनो एसिड अणुओं का आवश्यकतानुसार उपयोग प्रोटीन के निमार्ण में करता है। जो एमिनो एसिड प्रोटीन के निर्माण में इस्तेमाल नहीं होते, वे विघटित होकर शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं।
“1 ग्राम प्रोटीन 4 किलो कैलोरी ऊर्जा प्रदान करता है।”
प्रोटीन के क्या कार्य हैं ?
संरचनात्मक तत्व पोटीन हमारी मसल्स (मांसपेशियों) का मुख्य हिस्सा होते हैं। हमारे शारीरिक वजन का लगभग 18 प्रतिशत भाग प्रोटीन ही होते हैं।
- मरम्मत और रखरखाव- घाव भरने की प्रक्रिया, क्षतिग्रस्त टिश्यूज की मरम्मत, शारीरिक संरचना व विभिन्न कार्य प्रणालियों के रखरखाव के लिए प्रोटीन जरूरी होते हैं।
- इम्यून सिस्टम- प्रोटीन एंटीबॉडी के निर्माण द्वारा संक्रमण और बीमारियों की रोक-थाम में मदद करते हैं। एंटीबॉडी प्रोटीन शरीर में हानिकारक वायरस और बैक्टीरिया (एंटीजन तत्वों) को पहचान कर उन्हें नष्ट करने में मदद करते हैं।
- संरक्षण- केरोटिन नामक प्रोटीन त्वचा, बालों और नाखूनों में प्रयुक्त होता है व वातावरण के हानिकारक प्रभावों से शरीर की रक्षा करता है।
विभिन्न हॉर्मोनों के निर्माण में प्रोटीन सहायक होते हैं। उदाहरण के लिए प्रोटीन से बने दो होन- इंसुलिन व लुकामानि रक्त शर्करा के स्तर के नियमन में मदद करते हैं।
एंजाइम- एंजाइम ऐसे प्रोटीन हैं जो शरीर में रासायनिक प्रतिक्रियाओं की गतिशीलता बढ़ाते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ एंजाइग प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट व फैट के अणुओं को पावन द्वारा छोटे अणुओं में तोड़ कर उनके अवशोषण में मदद करते हैं। कुछ अन्य एंजाइम आनुवांशिक गुणसूत्रों के आधार डीएनए के निर्माण में भूमिका निभाते हैं।
परिवहन- विभिन्न तत्वों व अणुओं के शरीर में परिवहन में प्रोटीन की प्रमुख भूमिका है। लाल रक्त कोशिकाओं का आयरन युक्त पिगगेंट हीमोग्लोबिन प्रोटीन, ऑक्सीजन को फेफड़ों से टिश्यू तक लाने और टिश्यू से कार्बन-डाइऑक्साइड को वापस फेफड़ों तक ले जाने का कार्य करता है।
शरीर का पीएच संतुलन- हमारे शरीर में रक्त, लार, आदि विभिन्न द्रव्य ज्यूट्रल पीएच (7.0) पर सबसे अच्छा कार्य करते हैं। इन शारीरिक द्रव्यों का पीएत हमारे खान-पान, पर्यावरण के प्रदूषण, आदि कई कारकों से बदलता है। द्रव्यों की एसिडिटी व ऐल्कलिनिटी (पीएच) के परिवर्तन से हमें कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। विभिन्न प्रोटीन बफर के रूप में कार्य कर शरीर के पीएच को न्यूट्रल रखने में मदद करते हैं। जब रक्त का पीएच एसिडिक हो जाता है, तब बफर प्रोटीन रक्त में मौजूद हाइड्रोजन आयन को अवशोषित कर रक्त के पीएच को फिर से सामान्य कर देते हैं।
कई अध्ययनों से पता चला है कि कैंसर रोग ऐल्कलाइन वातावरण में नहीं पनपता बल्कि एसिडिक वातावरण में पनपता है। मांसाहार के स्थान पर शाकाहारी प्रोटीन से भरपूर आहार के सेवन द्वारा शरीर के अंदर ऐल्कलाइन वातावरण बनाकर हम बीमारियों से बचाव कर सकते हैं।
विभिन्न शारीरिक कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका होने के कारण प्रोटीन सभी आयु के व्यक्तियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। शिशु के शरीर में जमा फैट को मसल्स और हड्डियों में बदलने के लिए प्रोटीन आवश्यक है। 18 साल की आयु तक के युवक व युवतियों के शारीरिक विकास व विभिन्न अंग प्रत्यंगों की परिपक्वता के लिए भी प्रोटीन आवश्यक है।
18 साल से 40 साल की उम्र तक प्रोटीन शरीर के अंगों के संचालन व रखरखाव, क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की मरम्मत और असमय बुढ़ापे से बचाव के लिए आवश्यक होता है। 40 साल की उम्र के बाद बुढापे की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इस उम्र से प्रोटीन का पर्याप्त सेवन सक्रिय रहने, मसल्स की धीमी सतत हानि की रोकथाम, विभिन्न शारीरिक प्रणालिया को क्रियाशील रखने और असमय बुढ़ापे से बचाव के लिए जरूरी है।

अनुवांशिक गुणसूत्रों (जीन) की अभिव्यक्ति पर आहार व उसके घटकों के प्रभाव के अध्ययन को न्युट्रीजिनोमिक्स कहते हैं। हमारे अनुवांशिक गुणसूत्रों के साथ आहार और पोषक तत्वों के पारस्परिक प्रभाव का इसमें अध्ययन किया जाता है। न्युट्रीजिनोमिक्स पता लगता है की हमारे आहार की इन गुणसूत्रों की रुपरेखा बदलने व इस तरह शरीर की संरचना और आकर के परिवर्तन में क्या भूमिका हो सकती है। उदहारण के लिए एक माता पिता बनने वाले जोड़े की लम्बाई कम है तो संभावना है कि उनके अनुवांशिक गुणसूत्रों के कारण उनके बच्चों की लम्बाई भी कम होगी। लेकिन ये बच्चे अगर बचपन से ही अपनी पोषण की आपूर्ति के लिए संतुलित आहार व विशेषतः पर्याप्त प्रोटीन लेते हैं, तो वे अपने माता-पिता की तुलना में लम्बे हो सकते हैं। कई वर्षों तक अच्छे पोषण के प्रभाव से उनके जीन परिवर्तित हो सकते हैं।
मुझे उम्मीद है मित्रों प्रोटीन के बारे में यह जानकारी आपको अच्छी लगी होगी। अगली पोस्ट में आपको प्रोटीन के प्रकार के बारे में जानकारी लेकर आऊंगा। मुझे आशा है की आप इस पोस्ट को like और share जरूर करेंगे।
धन्यवाद !